Bihar Land Survey 2024:बिहार सरकार ने गरीब और मध्यमवर्गीय जमीन मालिक को दिया राहत भरी खबर, जमीन सर्वे में बस करना होगा ये छोटा काम
बिहार सरकार ने हाल ही में एक ऐतिहासिक निर्णय लिया है जिसके तहत भूमि सर्वेक्षण के लिए अब हस्तलिखित बंसावली (वंशावली) को मान्य किया जाएगा। यह कदम बिहार के ग्रामीण और पारंपरिक समाज के लिए एक बड़ी राहत है, क्योंकि यहां के लोगों के पास अधिकतर वंशानुगत दस्तावेज हस्तलिखित रूप में ही उपलब्ध हैं। इस गाइड में हम समझेंगे कि यह बंसावली क्या है, क्यों आवश्यक है, और कैसे इसे तैयार करके भूमि सर्वेक्षण में उपयोग किया जा सकता है। बंसावली का अर्थ है परिवार की वंशावली। यह एक दस्तावेज होता है जिसमें परिवार की पीढ़ियों के नाम, संबंध, और उनका इतिहास दर्ज किया जाता है। प्राचीन समय से ही भारत में वंशावली का महत्व रहा है, क्योंकि यह परिवार के लोगों की पहचान, संबंध, और ज़मीन-जायदाद में हिस्सेदारी को साबित करने का एक प्रमाण है। बिहार में भी अधिकतर परिवारों में उनकी वंशावली का रिकॉर्ड होता है, जिसे बंसावली के रूप में जानते हैं।
बिहार भूमि सर्वेक्षण में बंसावली का महत्व
बिहार में भूमि सर्वेक्षण के दौरान भूमि के मालिकाना हक को प्रमाणित करने के लिए विभिन्न दस्तावेज़ों की आवश्यकता होती है। परंतु, समय के साथ कई पुराने दस्तावेज नष्ट हो चुके हैं या खो गए हैं। ऐसे में बंसावली एक महत्वपूर्ण दस्तावेज साबित हो सकती है जो परिवार के सदस्यों के भूमि के हिस्से को साबित करने में सहायक है। सरकार ने यह मान्यता दी है कि यदि किसी परिवार के पास वंशावली का दस्तावेज है तो उसे भूमि सर्वेक्षण के दौरान प्रस्तुत किया जा सकता है और यह भूमि के मालिकाना हक के प्रमाण के रूप में मान्य होगा।
बिहार में भूमि सर्वेक्षण की प्रक्रिया
बिहार में भूमि सर्वेक्षण की प्रक्रिया कई चरणों में होती है। इस प्रक्रिया के अंतर्गत सरकार भूमि का रिकॉर्ड तैयार करती है, जिसके आधार पर जमीन के मालिकाना हक को स्थापित किया जाता है। भूमि सर्वेक्षण के प्रमुख चरण निम्नलिखित हैं:
1. भूमि का मापन: सर्वेक्षक भूमि का सटीक मापन करते हैं और नक्शा तैयार करते हैं।
2. जमीन का रिकॉर्ड अपडेट करना: भूमि के मालिकाना हक से संबंधित जानकारी दर्ज की जाती है।
3. यदि किसी वंशावली का सत्यापन: व्यक्ति के पास दस्तावेज़ नहीं हैं, तो हस्तलिखित बंसावली का उपयोग किया जा सकता है।
4. प्रमाणन: सभी दस्तावेजों की पुष्टि के बाद प्रमाणन जारी किया जाता है।
बंसावली तैयार करने के नियम
हस्तलिखित बंसावली को भूमि सर्वेक्षण में प्रस्तुत करने से पहले कुछ नियमों का पालन करना अनिवार्य है। इन नियमों का पालन करने से बंसावली को मान्य बनाने में सहायता मिलती है, वंशावली में लिखे गए सभी नाम, जन्म की तारीखें, और रिश्ते स्पष्ट होने चाहिए।वंशावली में पीढ़ियों को सही क्रम में रखा जाना चाहिए।बंसावली को प्रमाणित कराने के लिए पंचायत या ग्राम सभा के अधिकारी का हस्ताक्षर होना चाहिए। वंशावली को समय-समय पर अपडेट किया जाना चाहिए ताकि नए सदस्य और उनके हिस्सेदारी को सही से दर्शाया जा सके।
बंसावली को प्रमाणित कराने की प्रक्रिया
हस्तलिखित बंसावली को मान्य करने के लिए निम्नलिखित प्रक्रिया अपनाई जा सकती है,वंशावली को पंचायत या ग्राम सभा में प्रस्तुत करके उसका सत्यापन करवाया जा सकता है। पंचायत स्तर पर प्रमाणन के बाद इसे ब्लॉक या तहसील स्तर पर अनुमोदित करवाया जा सकता है। एक बार प्रमाणित होने के बाद इसे सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज कराना अनिवार्य है ताकि इसे भूमि के स्वामित्व का प्रमाण माना जा सके। बिहार सरकार के इस निर्णय का बहुत सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। ग्रामीण क्षेत्रों में जहाँ कागज़ी रिकॉर्ड्स नष्ट हो चुके हैं या खो गए हैं, वहाँ बंसावली के मान्यता से लोगों को भूमि पर अधिकार प्राप्त करने में आसानी होगी। भूमि सर्वेक्षण के दौरान कई बार विवाद उत्पन्न होते हैं, लेकिन हस्तलिखित वंशावली के मान्यता से इन विवादों को कम किया जा सकता है। इससे सरकारी प्रक्रिया भी तेज़ और सुचारू होगी।
बिहार में भूमि सर्वेक्षण के लिए हस्तलिखित बंसावली का मान्यता देना एक सराहनीय कदम है जो लोगों को अपने अधिकार प्राप्त करने में सहायता करेगा। यह निर्णय ग्रामीण समाज के पारंपरिक दस्तावेज़ों को मान्यता देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जिससे बिहार में भूमि सर्वेक्षण की प्रक्रिया को सरल और प्रभावी बनाया जा सकेगा।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें