शनिवार, 25 अक्टूबर 2025

Chhath Puja 2025: छठ पूजा में क्या-क्या फल का भोग लगाया जाता है? जानिए पूर्ण सूची और उनका धार्मिक महत्व

 

भारत में छठ पूजा सूर्य भगवान और छठी मैया की आराधना का सबसे बड़ा पर्व है। यह पर्व चार दिनों तक चलता है और इसकी विशेषता है — सात्विकता, पवित्रता और नियम। इस पावन पर्व में व्रती महिलाएं और पुरुष “निर्जला उपवास” रखकर सूर्य भगवान को अर्घ्य देती हैं। पूजा के दौरान चढ़ाया जाने वाला फल-भोग (Prasad) इस पर्व का अहम हिस्सा होता है।

छठ पूजा में जो फल चढ़ाए जाते हैं, उनका धार्मिक, सांस्कृतिक और प्राकृतिक महत्व जुड़ा होता है। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि “छठ पूजा में क्या-क्या फल का भोग लगाया जाता है”, उनका क्या प्रतीकात्मक अर्थ है, और कैसे ये पूजा की पवित्रता को बढ़ाते हैं।


छठ पूजा में फल चढ़ाने का महत्व

छठ पूजा में फल और प्रसाद का विशेष महत्व होता है। यह पूजा केवल भक्ति का प्रतीक नहीं, बल्कि प्रकृति के प्रति कृतज्ञता भी दर्शाती है। सूर्य भगवान ऊर्जा, जीवन और स्वास्थ्य के देवता हैं, और फलों के रूप में हम प्रकृति से प्राप्त शुद्ध, सात्विक और प्राकृतिक अर्पण करते हैं।
फलों को भोग के रूप में लगाने का उद्देश्य है —

  • प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करना।

  • सात्विक आहार से शरीर और मन की शुद्धि करना।

  • सूर्य और जल की ऊर्जा को ग्रहण करना।

  • स्वास्थ्य, संतान, और समृद्धि की कामना करना।

छठी मैया को फल विशेष प्रिय माने जाते हैं क्योंकि ये प्राकृतिक, बिना पकाए, और शुद्धता का प्रतीक होते हैं।

छठ पूजा में लगने वाले प्रमुख फल और उनका धार्मिक अर्थ

अब जानते हैं कि छठ पूजा में कौन-कौन से फल चढ़ाए जाते हैं और उनका क्या धार्मिक महत्व है।

(1) केला (Banana)

केला छठ पूजा का सबसे प्रमुख फल है। इसे संतान वृद्धि और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। व्रती महिलाएं पूजा में पूरे केले का गुच्छा (झुंड) चढ़ाती हैं, जो परिवार की पूर्णता का संकेत है।

(2) नारंगी और मौसमी (Orange / Sweet Lime)

ये फल ऊर्जा और जीवन शक्ति के प्रतीक हैं। नारंगी और मौसमी में सूर्य की तेजस्विता झलकती है, इसलिए इन्हें अर्घ्य के समय अर्पित किया जाता है।

(3) सेब (Apple)

सेब को स्वास्थ्य का प्रतीक माना गया है। छठ पूजा में सेब चढ़ाने का अर्थ है परिवार के स्वास्थ्य और दीर्घायु की कामना करना।

(4) अंगूर (Grapes)

अंगूर का गुच्छा सामूहिकता और परिवारिक एकता का प्रतीक होता है। इसे व्रती लोग इस भावना से चढ़ाते हैं कि परिवार में प्रेम और मेलजोल बना रहे।

(5) आम (Mango)

अगर मौसम में उपलब्ध हो, तो आम को भगवान सूर्य के प्रिय फल के रूप में चढ़ाया जाता है। यह फल आनंद और प्रसन्नता का प्रतीक है।

(6) अनानास (Pineapple)

अनानास का अर्थ है “स्वाद और आत्मीयता।” इसे छठ पूजा में भोग के रूप में रखा जाता है क्योंकि इसका आकार सूर्य की किरणों की तरह फैला हुआ होता है — जो ऊर्जा का प्रतीक है

(7) नींबू (Lemon)

नींबू शुद्धता और संक्रमण से रक्षा का प्रतीक है। छठ पूजा में इसे थाली में इसलिए रखा जाता है ताकि पूजा का प्रसाद पवित्र बना रहे।

(8) नारियल (Coconut)

नारियल हर पूजा में अनिवार्य होता है। छठ पूजा में इसे शुद्धता और समर्पण का प्रतीक माना गया है। इसे फोड़कर भगवान सूर्य को अर्पित किया जाता है।

(9) अमरूद (Guava)

अमरूद छठ पूजा में ज्ञान और स्थिरता का प्रतीक है। इसे व्रती महिलाएं “अरघ्य थाली” में शामिल करती हैं।

(10) बेल फल, शरीफा, सिंघाड़ा, ईख (Sugarcane)

  • ईख (गन्ना) सूर्य पूजा का सबसे महत्वपूर्ण प्रतीक है।
    सिंघाड़ा और बेल फल जल और धरती के तत्वों का प्रतीक हैं।
    इन सब फलों को मिलाकर “सूप” और “दउरा” में सजाया जाता है, जिसे व्रती महिलाएं शाम और सुबह के अर्घ्य में ले जाती हैं।

छठ पूजा में फल भोग तैयार करने के नियम और परंपरा

छठ पूजा का भोग “शुद्धता और सात्विकता” का प्रतीक होता है।
भोग बनाते समय निम्न नियमों का पालन आवश्यक है:

  • भोग तैयार करने से पहले पूरे घर की सफाई की जाती है।

  • व्रती महिलाएं स्नान करके नए वस्त्र पहनती हैं।

  • भोग और फल तांबे, पीतल या मिट्टी के बर्तन में रखे जाते हैं।

  • प्रसाद या फल में लहसुन-प्याज या मसालेदार वस्तुएं नहीं होतीं।

  • ठेकुआ”, “कद्दू भात”, “रसीला प्रसाद”, और “फल भोग” — सब प्राकृतिक रूप से बनाए जाते हैं।

फलों को किसी भी तरह काटा या छिला नहीं जाता। ये पूरे के पूरे फल ही अर्पित किए जाते हैं, जिससे उनका “पूर्णता का प्रतीक” बना रहे।

छठ पूजा के दिनों में फल भोग का क्रम (नहाय-खाय से लेकर उषा अर्घ्य तक)

छठ पूजा चार दिनों में होती है, और हर दिन फल-भोग की अपनी भूमिका होती है:

पहला दिन – नहाय-खाय (शुद्धता का आरंभ)

इस दिन व्रती महिलाएं नदी या तालाब में स्नान करती हैं और लौकी-भात, चना दाल, और कद्दू का भोजन करती हैं।
इस दिन से फल नहीं चढ़ाए जाते, बल्कि यह तैयारी का दिन होता है।

दूसरा दिन – खरना (निर्जला उपवास की शुरुआत)

इस दिन गुड़ की खीर, रोटी और केले का भोग लगाया जाता है। यह सूर्य भगवान को धन्यवाद देने का प्रतीक है।

तीसरा दिन – संध्या अर्घ्य (शाम की पूजा)

इस दिन फलों की थाली सजाई जाती है।
सूप में रखे जाते हैं — केले, नारियल, अमरूद, सिंघाड़ा, गन्ना, सेब, नींबू, मौसमी, और बेल फल।
सूर्यास्त के समय घाट पर जाकर सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है।

चौथा दिन – उषा अर्घ्य (सुबह की पूजा)

सूर्योदय से पहले घाट पर पुनः वही फल भोग अर्पित किया जाता है।
यह व्रत की पूर्णता का प्रतीक होता है।
अर्घ्य के बाद व्रती महिलाएं परिवार के साथ प्रसाद ग्रहण करती हैं।

निष्कर्ष

छठ पूजा में चढ़ाए जाने वाले फल केवल पूजा सामग्री नहीं हैं, बल्कि ये जीवन के मूल तत्वों का प्रतिनिधित्व करते हैं — जल, भूमि, अग्नि, वायु और आकाश।
हर फल में सूर्य की किरणें और धरती की उर्वरता का आशीर्वाद छिपा है।
इसलिए जब आप पूछते हैं — “छठ पूजा में क्या-क्या फल का भोग लगाया जाता है?” — तो इसका उत्तर केवल सूची नहीं, बल्कि भक्ति, प्रकृति और विज्ञान का संगम है।
यह पर्व हमें सिखाता है कि शुद्धता, संयम और श्रद्धा से किया गया हर कार्य, हमारे जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और समृद्धि लेकर आता है। 

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

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