Makar Sankranti 2025: मकर संक्रांति आज, जानें पुण्य और महापुण्य काल का मुहूर्त और महत्व
मकर संक्रांति 2025 की तिथि और समय मकर संक्रांति हिंदू धर्म का एक प्रमुख पर्व है, जिसे देशभर में बड़े ही उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। 2025 में मकर संक्रांति 15 जनवरी को मनाई जाएगी। इस दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है, जिसे "सूर्य का उत्तरायण होना" भी कहा जाता है।
धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन दान, स्नान और पूजा-पाठ करने का विशेष महत्व होता है।
- तिथि: 15 जनवरी 2025
- पुण्य काल का मुहूर्त: प्रातः 7:30 बजे से दोपहर 12:00 बजे तक
- महापुण्य काल का मुहूर्त: प्रातः 8:45 बजे से 10:15 बजे तक
मकर संक्रांति का महत्व मकर संक्रांति को शुभ अवसरों और धार्मिक कार्यों के लिए सबसे पवित्र दिनों में से एक माना जाता है। इस दिन से सूर्य उत्तरायण होता है, जिसका अर्थ है कि सूर्य पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध की ओर अग्रसर होता है। यह दिन समृद्धि, स्वास्थ्य और आध्यात्मिकता का प्रतीक है। मकर संक्रांति का उल्लेख पौराणिक ग्रंथों और वेदों में भी मिलता है।
धार्मिक मान्यताएँ:
- दान और पुण्य का महत्व: मकर संक्रांति के दिन दान करना अत्यंत पुण्यकारी माना जाता है। अन्न, तिल, गुड़, कंबल और वस्त्र दान करने से पापों का नाश होता है और आत्मा की शुद्धि होती है।
- स्नान का महत्व: इस दिन गंगा, यमुना, या किसी अन्य पवित्र नदी में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। जो लोग नदियों में स्नान नहीं कर सकते, वे घर पर ही स्नान करके सूर्य देव को अर्घ्य दें।
- भगवान सूर्य की पूजा: सूर्य देव को अर्घ्य देकर उनकी उपासना करना जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और समृद्धि लाता है।
पौराणिक कथाएँ: मकर संक्रांति से जुड़ी कई पौराणिक कथाएँ हैं। एक कथा के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु ने असुरों का संहार किया था और उनके सिरों को मंदार पर्वत के नीचे दबा दिया था। इसीलिए इसे बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व भी माना जाता है।
मकर संक्रांति और क्षेत्रीय विविधताएँ मकर संक्रांति पूरे भारत में अलग-अलग नामों और परंपराओं के साथ मनाई जाती है।
- पोंगल (तमिलनाडु): दक्षिण भारत में इसे पोंगल के रूप में मनाया जाता है। यह फसलों की कटाई का पर्व है, जिसमें सूर्य देव की विशेष पूजा होती है।
- लोहड़ी (पंजाब): मकर संक्रांति से एक दिन पहले लोहड़ी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन लोग अलाव जलाकर नृत्य और गीत गाते हैं।
- उत्तरायणी (उत्तराखंड): उत्तराखंड में इस पर्व को उत्तरायणी मेले के रूप में मनाया जाता है।
- खिचड़ी (उत्तर प्रदेश और बिहार): उत्तर भारत में इस दिन खिचड़ी बनाने और खाने की परंपरा है। इसे दान का भी विशेष पर्व माना जाता है।
- भोगली बिहू (असम): असम में इस पर्व को भोगली बिहू के नाम से मनाया जाता है।
मकर संक्रांति के वैज्ञानिक और सामाजिक पहलू
- वैज्ञानिक दृष्टिकोण: मकर संक्रांति खगोलीय दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। इस दिन से दिन बड़े और रातें छोटी होने लगती हैं। सूर्य की उत्तरायण गति से पृथ्वी पर तापमान में वृद्धि होती है, जो फसलों के लिए अनुकूल होती है।
- सामाजिक एकता का प्रतीक: यह पर्व समाज में एकता और सद्भाव का संदेश देता है। लोग इस दिन तिल-गुड़ खाकर एक-दूसरे से मीठा बोलने और संबंधों को प्रगाढ़ बनाने का संकल्प लेते हैं।
मकर संक्रांति पर अनुष्ठान और परंपराएँ
- तिल-गुड़ का प्रसाद: मकर संक्रांति के दिन तिल और गुड़ का सेवन और वितरण करना शुभ माना जाता है। यह स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है और रिश्तों में मिठास बढ़ाता है।
- पतंगबाजी: गुजरात और राजस्थान में मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाने की परंपरा है। इसे आनंद और उल्लास का प्रतीक माना जाता है।
- खिचड़ी बनाना: उत्तर भारत में इस दिन खिचड़ी बनाना और इसे दान करना शुभ माना जाता है।
- गायों की पूजा: ग्रामीण क्षेत्रों में लोग गायों को सजाते हैं और उनकी पूजा करते हैं। गाय को धन और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।
मकर संक्रांति पर क्या करें और क्या न करें
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क्या करें:
- सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और सूर्य देव को अर्घ्य दें।
- तिल-गुड़ का दान और सेवन करें।
- जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र और धन का दान करें।
- परिवार के साथ मिलकर पर्व मनाएं।
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क्या न करें:
- किसी का अपमान या बुरा बोलने से बचें।
- अनावश्यक खर्च करने से बचें।
- पूजा-पाठ में लापरवाही न करें।

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