सोमवार, 7 अक्टूबर 2024

Bihar Land Survey: बिहार में भूमि सर्वेक्षण का इतिहास क्या है, जाने..

Bihar Land Survey: बिहार में भूमि सर्वेक्षण का इतिहास क्या है, जाने..

बिहार में भूमि सर्वेक्षण का इतिहास काफी पुराना और जटिल है, जो राज्य के कृषि और समाजिक ढांचे के साथ गहराई से जुड़ा हुआ है। भूमि सर्वेक्षण का मुख्य उद्देश्य कृषि योग्य भूमि की पहचान, सीमांकन और मालिकाना हक को स्थापित करना है, जिससे भूमि विवादों को सुलझाने और सरकारी नीतियों के तहत भूमि सुधारों को लागू करना आसान हो सके।


प्रारंभिक भूमि व्यवस्था

बिहार में भूमि की पहली व्यवस्थित रिकॉर्डिंग का प्रयास ब्रिटिश शासन के दौरान किया गया था। 1765 में, अंग्रेजों ने बंगाल, बिहार और उड़ीसा की दीवानी हासिल की, जिससे उन्हें इन क्षेत्रों में कर संग्रहण का अधिकार मिला। इसके साथ ही अंग्रेजों ने एक व्यवस्थित जमींदारी व्यवस्था की शुरुआत की, जहां जमींदारों को कृषि भूमि का मालिक घोषित किया गया और उनसे कर वसूली का काम लिया गया।  


1800 के दशक के उत्तरार्ध में, परमानेंट सेटेलमेंट एक्ट, 1793 के तहत, जमींदारों को भूमि का मालिकाना हक दे दिया गया, लेकिन इसके परिणामस्वरूप किसानों पर अत्यधिक कर बोझ पड़ा और कई सामाजिक-आर्थिक असमानताएं उभरने लगीं। इसी दौरान भूमि सर्वेक्षण और रिकॉर्ड का काम शुरू हुआ ताकि सरकारी नीतियों के तहत कर संग्रहण को बेहतर बनाया जा सके।


19वीं सदी का भूमि सर्वेक्षण

बिहार में पहली विस्तृत भूमि सर्वेक्षण प्रक्रिया 19वीं सदी के अंत में और 20वीं सदी के आरंभ में शुरू हुई। इस समय ब्रिटिश प्रशासन ने भूमि का कठिहार सर्वेक्षण किया, जिसमें गांवों की सीमा, भूमि के मालिकों की पहचान, भूमि के उपयोग, और भूमि पर कर की जानकारी एकत्र की गई। इसके तहत बड़े पैमाने पर कृषि भूमि की पहचान की गई और उसका नक्शा तैयार किया गया। 
इस समय भूमि सर्वेक्षण का मुख्य उद्देश्य भूमि की पहचान कर, कृषि उत्पादन को बढ़ाना और कर संग्रहण की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करना था। इस सर्वेक्षण से भूमि विवादों को हल करने और भूमि सुधार योजनाओं को लागू करने में मदद मिली।


स्वतंत्रता के बाद का भूमि सर्वेक्षण

स्वतंत्रता के बाद, भारत सरकार और बिहार राज्य ने भूमि सुधार कार्यक्रमों को तेजी से लागू करने का प्रयास किया। 1950 के दशक में, भारत सरकार ने जमींदारी प्रथा को समाप्त करने और भूमि पुनर्वितरण की नीतियां लागू कीं। इन सुधारों के तहत भूमि का पुनःसर्वेक्षण और पुनर्वितरण किया गया। 


बिहार में भूमि सर्वेक्षण की प्रक्रिया फिर से उभरी, खासकर जब राज्य ने छोटे और सीमांत किसानों को अधिक भूमि प्रदान करने और भूमि विवादों को सुलझाने का प्रयास किया। भूमि सुधार कानूनों के तहत सर्वेक्षण प्रक्रिया में भूमि के मालिकों की पहचान करना, भूमि का पुनर्वितरण और बेनामी संपत्तियों की जांच प्रमुख थे। 


आधुनिक समय में भूमि सर्वेक्षण

21वीं सदी में, बिहार सरकार ने डिजिटल तकनीक और सैटेलाइट इमेजिंग की मदद से आधुनिक भूमि सर्वेक्षण कार्यक्रम शुरू किए हैं। यह प्रक्रिया राज्य के भूमि रिकॉर्ड को अपडेट और डिजिटाइज करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। भू-अभिलेखों का कंप्यूटरीकरण, डिजिटल नक्शे, और भूमि की पंजीकरण प्रक्रिया को ऑनलाइन करना, राज्य सरकार की ओर से किसानों और भूमि मालिकों को बेहतर सेवाएं प्रदान करने के प्रयासों का हिस्सा है। 


हाल के वर्षों में, बिहार में भूमि सर्वेक्षण को लेकर कई विवाद भी सामने आए हैं, जिनमें अमीनों की गलतियों, दस्तावेजों की गड़बड़ी, और किसानों के साथ अन्याय के मुद्दे शामिल हैं। सरकार ने इन मुद्दों को हल करने के लिए कई नियामक उपाय और भूमि विवाद समाधान तंत्र की स्थापना की है।


बिहार में भूमि सर्वेक्षण का इतिहास सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक घटनाओं से गहराई से प्रभावित रहा है। चाहे ब्रिटिश शासन का कठिहार सर्वेक्षण हो या स्वतंत्रता के बाद के भूमि सुधार, भूमि सर्वेक्षण की प्रक्रिया हमेशा से राज्य के किसानों और जमींदारों के बीच विवादों को सुलझाने और कृषि उत्पादन को बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण रही है। आधुनिक तकनीक के आगमन से बिहार में भूमि सर्वेक्षण प्रक्रिया और अधिक पारदर्शी और प्रभावी बनने की उम्मीद है, जिससे राज्य के विकास में और योगदान मिलेगा।

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